Friday, May 13, 2022

कॉलेज और प्रेम

Love in college
Library

 कॉलेज रोज़ जाता था। दिन भर प्रेमी जोड़े दिखते रहते थे या यूँ कहूँ कि आँखें खोजती रहती थी। एक लड़की रोज़ लाइब्रेरी में दिखती थी। एक दिन जब वो लाइब्रेरी में आयी तो साथ में एक लड़का कंधे पर बैग टाँगे उसके साथ साथ लाइब्रेरी में आया। लाइब्रेरियन ने डाँट दिया कि मालूम नहीं है कि बैग बाहर रखना होता है। लड़की हँस दी। लड़का मुस्कुरा दिया। दोनों घंटे भर लाइब्रेरी में बैठे रहे। लड़की अपने कोर्स की किताबें पढ़ती रही और लड़का कभी फ़ोन चलाता तो कभी यूँ ही किताबों के कुछ पन्ने पलट लेता। लड़की ने घंटे भर में क़रीब बीस पेज पढ़े। लड़के ने घंटे भर में दो पेज पढ़े। जिस लड़के को इतना नहीं मालूम कि लाइब्रेरी में बैग ले जाने की मनाही है मतलब वो लाइब्रेरी पहली बार आया होगा। दो पेज कम नहीं होते। मतलव प्रेम में बहुत ताकत होती है। प्रेम लड़के को किताबों के क़रीब तो ले ही आया।


नितीश कुमार
Nitish Kumar


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Monday, April 25, 2022

जीवन की सीढ़ी।

जीवन की सीढ़ी
जीवन की सीढ़ी

तुम यहाँ तक तुरंत या एक झटके में नहीं आये हो। याद करो तुमने कितनी कठिनाईया और कितनी मुश्किलों का सामना किया है, तब जाकर आज तुम यहाँ खड़े हो। कितनी मुश्किल से सीखा था पाँच लकीरों वाली कॉपी में 'अ' और A लिखना, और आज तुम Running में लिख रहे हो। कितनी मुश्किल से तुमने सीखा था अंको को और Fractions को जोड़ना, नाजाने कितने ही Word-Meaning याद किये होंगे, घूमते घूमते कविताए और पर्यायवाची को याद किया होगा। कितनी मुश्किल से याद की थी 17 की टेबल, लगाया था BODMAS, Componendo-Dividendo, कितनी तिकड़म से किये थे नाजाने कितने ही LHS = RHS, Area, Volume, Pythagoras जैसे अनगिनत सवाल।

अपने लड़कपन में, जब जवानी उफ़ान पर होती है, जब चंचलता चरम पर होती है, जब तुम्हे देना चाहिए था अपने प्यार को वक़्त तब तुमने अपना सब कुछ दिया HC Verma, Organic Chemistry, RD Sharma और Differentiation को। 

कितने ट्यूशन, कितनी क्लास, कितने टेस्ट दिए तुमने। 11वी 12वी के 100 चैप्टर एक बार में दिमाग में बिठाये तुमने, दिये इस देश के सबसे कठिन एग्जाम IIT, JEE, NEET, AIIMS, CAT.

जब कहा गया कि सफर यहीं तक था, उसके बाद भी दिये और और और एग्जाम। हर समय पर बार बार, तुमने अलग अलग जनसंख्या से प्रतिस्पर्धा की, रिश्तेदारों के तानों से प्रतिस्पर्धा की, खाली जेब से प्रतिस्पर्धा की, प्रेम से प्रतिस्पर्धा की। कितनी क्लास, कॉलेज, Exams, Viva, Marksheets, Cut offs से होते हुए तुम आज यहाँ तक पहुँचे हो।

कोई भी जब तुम्हें कहे कि तुम काबिल नहीं हो, ये सब याद करो, एक झटके में नहीं, तुम साल दर साल, एक एक सीढ़ी चढ़के यहाँ तक पहुँचे हों। और अगर तुम यहाँ तक पहुँचे हो, तो आगे कहीं भी पहुँच सकते हो। वक़्त तुम्हें सिर्फ आज के पड़ाव पर रोक सकता है, पर इससे नीचे नहीं गिरा सकता, वो तुम्हारी कांस्टेंट कमाई है। आज नहीं तो कल धीरे धीरे तुम कहीं भी पहुँच सकते हो।

कोई माई का लाल तुम्हें ये कह नहीं सकता कि तुम क्या हो? हमेशा हमेशा इस बात को याद रखना... कि तुम एक झटके में यहाँ तक नहीं पहुँचे हो।


नितीश कुमार
Nitish Kumar



  • कैसे आकाश में सूराख़ हो नहीं सकता,
       एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो ।

  • मेरे सीने में ना सही, तेरे सीने में सही,
       हो कही भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए ।

    -दुष्यंत कुमार

दुष्यंत कुमार
दुष्यंत कुमार


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Friday, April 8, 2022

युद्ध

Ukraine Vs Russia
Ukraine vs Russia

युद्ध जब समाप्त होगा और तुम विजय होगे। तुम इस जहां के सिकंदर बन चुके होगे। तब चारो ओर रणभूमि में बस लाशो का सेलाब होगा। तुम उन लाशो के ढेर पर खड़े होकर जश्न बनाओगे। मगर तुम्हारे जश्न में तुम्हारा साथ देने वाला कोई भी नही होगा। तुम देखोगे कि तुम कितने अकेले हो चुके हो। तुम तड़पोगे अपने जीत के किस्से सुनाने के लिए। तुम्हारे पास अब सब कुछ होगा मगर तुम्हारे जीत के किस्से सुनने के लिए एक जोड़ी कान भी तुम्हारे नसीब में नही रहेगा। क्योंकि ये लाशें तो ना ही सुन सकती और ना ही तुम्हारी जीत देख सकती है।


मैं चाहता हूं बंजर जमीन पर योद्ध लड़ा जाए। योद्धाओं के हाथ मे हथियार की जगह बीज और फावड़े दिए जाएं। इंसानो पर हथियार चलाने की जगह बंजर जमीन पर पूरी ताकत से फावड़ा चलाया जाए और बीज रोपा जाए। जो सबसे ज्यादा गुलाब उगयायेगा वो विजेता घोषित किया जाएगा। जीत किसी की भी हो ये दुनिया खुशबू सुंगेगी, लाशो की बदबू तो वैसे ही बहुत सुंग ली है। 


नितीश कुमार
Nitish Kumar


Russia Ukraine
After War

Russia Vs Ukraine war
Life After War



कौन शासन से कहेगा, कौन समझेगा
एक चिड़िया इन धमाकों से सिहरती है
-दुष्यंत कुमार


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Friday, December 31, 2021

2021 का मंजर

 

Covid 19
Covid-19 or Corona Virus (SARS-CoV-2)

2021 का मंजर!


साल बदलने को है, 
हाल बदलने को है।
बदलने को है ये कैलेंडर,
बदलने को है ये दिसंबर।।

मगर याद है वो सारा मंजर,
एक एक तस्वीर आज भी है हमारे अंदर।
अस्पताल के बाहर लगती वो कतारे,
धृतराष्ट्र बनी हमारी वो सरकारें।।

चीखता चिल्लाता हमारा देश,
ऑक्सीजन के लिए तड़पता स्वदेश।
मदद के लिए दिखते हज़ारो संदेश,
और हमारे नेताओं का बदलता वेश।।

ना जाने कितनो ने अपनो को खोया,
कितनो ने अपने सपनो को खोया।
खुशियों में हर दम जो नजर आया,
उन्हें ही जरूरत में खुद से दूर पाया।।

देखो हमारी किस्मत में कैसी सरकारे आयी,
जिन्होंने कहा ऑक्सीजन बिन किसी की मौत ना हुई।
ये कहते उन्हें तनिक भी लाज ना आयी,
ऑक्सीजन के लिए तड़पते देश की तस्वीर नजर ना आयी।।

पूण्य है वो लोग जिन्होंने ऐसे वक्त में इंसानियत दिखाई,
सोनू सूद - कुमार विश्वास जैसे कितनो ने कितनो की जान बचाई।
है नमन उन सभी को जिन्होंने भगवान का रूप बन देश को बचाया,
है नमन उन सभी परिवारों को जिन्होंने इस वर्ष अपनों को खोया।।

आओ करते है हम एक वादा,
फॉलो करेंगे कोरोना का हर एक कायदा,
ये मंजर फिर नही आने देंगे।
साथ मिल ओमिक्रोन को हरा देंगे।।

नितीश कुमार
Nitish Kumar

We’ve lost so many souls this year 2021. We praying that God give peace to all the departed souls. Our Condolences with the families who lost their lovable one.

Hope this new year is filled with health, love, prosperity and loads of fun! 

Happy New Year...


Warning: Below images may distract you.
चेतावनी: नीचे दी गयी तसवीरें आपको विचलित कर सकती है।

Covid-19 Corona Virus
Family members of a COVID-19 victim console each other during cremation in Jammu, India, April 25, 2021. 
Pic Credit: Channi Anand/AP

2nd wave India
People cremate the body of a COVID-19 victim at a crematorium ground in New Delhi, April 24, 2021.
Pic Credit: Danish Siddiqui/Reuters

Corona Virus in 2021
New bodies arrive at a mass cremation site in Delhi, April 23, 2021.
Pic Credit: Atul Loke/The New York Times/Redux Pictures

Oxygen Shortage in India
A man receives oxygen in a vehicle at a Sikh gurdwara (temple) in Delhi, April 25, 2021.
Pic Credit: Atul Loke/The New York Times/Redux Pictures

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Monday, March 29, 2021

रामायण से सीख

Ramayan
रामायण

 आज ही के दिन पिछले वर्ष लॉकडाउन में दूरदर्शन पर जनता की फरमाइस पर रामायण का प्रसारण शुरू हुआ था। पूरे देश में, देश के हर राज्य में, हर मोहल्ले में, हर गली में, कहीं कहीं तो विदेशो में भी लोगो ने बढ़ चढ़ कर इसे देखा, पूरे परिवार के साथ बैठ कर देखा। बल्कि देखा ही नही, इस पल को सबने मिलकर जिया। इस रामायण प्रसारण के जिस दिन रावण मरा था, लोगो ने उस दिन एक दूसरे को दशहरा की बधाई दी थी।  6 करोड टेलीविजन पर रामायण को एक साथ देखा जाता था। रामायण का हर एक सीन हर एक किरदार कुछ ना कुछ सीखाता है। 


Ramayan
भगवान श्री राम जी


उसमे दो सीन है जिसने मुझे सोचने पे मजबूर कर दिया था। पहला सीन जिसमे महाराज दशरथ जी बिस्तर पे लेटे हुए हैं, बुरी तरीक़े से रो रहे है, और सिसक सिसक के कह रहे होते हैं, राम........मेरा राम। वो अपने राम की याद में अधमरे से हो गए है। क्या आदमियों को ऐसे सबके सामने अपना दुःख दिखाने का हक़ होता है? मतलब मुझे शायद सालों हो गए रोये हुए, हाँ बीच में कभी बुरा लगा होगा। पर प्रॉब्लम पता है क्या है? ये बात कि मुझे बुरा लग रहा है। मैंने मोबाइल उठा के देखा होगा कि किसे फ़ोन मिलाएं, किसी को मिलाया भी होगा पर उससे ये नहीं कहा होगा कि यार मुझे बुरा लग रहा है। क्यों? क्योंकि शायद वो मुझे judge करेगा।


Ramayan
महाराज दशरथ जी भगवान श्री राम की याद में विलाप करते हुए


उस दिन श्री राम जी की माँ कौशल्या जी महाराज दशरथ जी से कहती हैं कि "मैं माँ हूँ, पर मैंने फिर भी धीरज नहीं छोड़ा, देखिएगा एक दिन हमारा राम वापस आएगा।" और शायद उस वक़्त को याद करके दशरथ जी फिर से बस इतना कह पाते हैं, राम.....मेरा राम। एक सूर्यवंशी सम्राट, महापराक्रमी योद्धा, असंख्य प्रजा जिनको भगवान् की तरह मानती थी वो इस दुःख में रो रहे थे कि उनका बेटा उन्हें छोड़ के चला गया। वजह चाहें जो भी हो, पर क्या उनका ऐसे रोना सही था या गलत? सवाल बस यही है।


Ramayan
महाराज दशरथ जी


एक बार ये सवाल खुद से पूछियेगा और जवाब ढूंढ़ियेगा। रोना सही है या गलत?


अब दूसरे सीन के बारे में बताता हूं। 


Ramayan
भगवान श्री राम जी


जब भगवान श्री राम जी को पता चलता है कि राजा दशरथ जी नहीं रहे तो वो भी सहन नही कर पाते है, और रोने लगते हैं। उनकी आँखों में मोती से आंशु, रामायण में सिर्फ इसी दृश्य में दिखते है, वो भी इतना मार्मिक। उनको रोते देख ऋषि वशिस्ट जी तब उनसे एक बहुत ही बड़ी बात बोलते हैं, ध्यान से पढ़ियेगा और समझियेगा, वो कहते हैं कि "ये मिलना बिछड़ना तो अनिवार्य होता है, बुद्धिमान इसका शोक नहीं करते हैं।" बहुत ही ज़बरदस्त लाइन है ये। एक ही लाइन में बहुत से सवालो के उत्तर है। शायद महान और आम लोगों की समझ के बीच बस इसी लाइन का फरक होता है। मतलब रामायण में भगवान श्री राम जी भी रोते हैं, लक्ष्मण जी भी रोते हैं। यहाँ तक की इंद्रजीत के मरने पर जिसे महाज्ञानी कहा जाता था, वो रावण भी रोता है। विभीषण के बिना शायद रावण को मार पाना कठिन था, मगर फिर भी रावण के मरने पर वो भी रोया था। शायद इसीलिए मेरे हिसाब से रोना गलत बात नहीं है, गलत बात है रोते रहना...!


Copyright Disclaimer:

  • All Images, which used in this Article are from the Doordarshan's Ramayan, Directed by Ramanand Sagar.
  • इस लेख में दिखने वाली तस्वीर दूरदर्शन की रामायण की है, जिसके निर्देशक रामानंद सागर जी है

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Saturday, March 13, 2021

रहस्य

 

Horror
रहस्यमयी सड़क


WARNING: Reader's discretion is advised, should not be read by anyone under the age of 16.


रात के 2 बज रहे हो, आप घर में अकेले हो, अचानक आपका घर का गेट कोई खटखटाता है और आपको पता है कि कोई आने वाला नही है, तो आप दरवाजा खोलेंगे या नही? आप जब भी भूत प्रेत के बारे में सुनते है तो आपके दिमाग में सफेद साड़ी और सफेद बालों वाली औरत, ठंड की वो काली रात, पायल की आवाज, किसी के रोने की आवाज, कब्रिस्तान का दृश्य, ये सब आपके दिमाग मे जरूर आता होगा। मैं जब भी भूतो के बारे में लिखता हूं तो मुझे खुद कभी कभी डर लगता है। मुझे Subconscious mind की वजह से लगता है की जिसके बारे में मैं लिख रहा हु वो मेरे कमरे में खड़ा है, मुड़ के देखता हूं तो कमरे के शीशे, हिलते हुए पर्दो के अलावा कुछ नही दिखता।


डर ही डर को पैदा करता है, कहते है जिस रास्ते के बारे में ना पता हो उस पर कभी नही जाना चाहिए, कभी भी नही। सालो पहले की बात है, एक आदमी देर रात अपने घर जा रहा था। हाईवे की तरफ वो जा रहा था तभी उसे एक कच्चा रास्ता दिखता है। उसे लगा इस रास्ते से वो हाइवे पे जल्दी पहुच जाएगा, उसने तुरंत अपनी बाइक उस कच्चे रास्ते पे मोड़ ली और यहीं उसने सबसे बड़ी गलती कर दी। थोड़ी दूर चलने के बाद एक ऐसी जगह आती है जहां बाइक की रोशनी के अलावा और कोई रोशनी नही थी। कहते है कि बुरी शक्तियां अंधेरे में अपने चरम पर होती है। वो बार बार अपनी घड़ी में समय देख रहा था। वो समझ चुका था कि ये रास्ता सही नही है। वो पसीने में लत पत तेजी से अपनी बाइक भागा रहा था। आचानक उसे कोई आवाज सुनाई देती है, जैसे लगता है उसे कोई बुला रहा है। वो ना चाहते हुए भी बाइक अचानक रोकता है। उसे वहाँ बड़ी अजीब सी चीज दिखाई देती है। कहते है आप कहीं जा रहे हो और आपको कुछ अजीब सी चीज दिखाई दे तो उसे टोकना नही चाहिए। वो आदमी जब सहम के आगे बढ़ता है तो देखता है एक औरत वहां खड़ी है। सबसे अजीब बात वो तो उस औरत को देख रहा है मगर वो औरत उसे नही देख रही, मतलब वो औरत सीधे देख रही है, सड़क के दूसरी ओर। पूरा अंधेरा, सुनसान जगह, आधी रात का वक़्त और वो औरत! आँखों मे डर, माथे पर सिकन। वो अपना थूख भी नही घोट पा रहा है। पसीने में लथ पथ अपनी आवाज भी नही निकाल पा रहा, ना कदम आगे बढ़ रहे है ना ही पीछे। वो औरत धीरे धीरे नजदीक आ रही है, नजदीक और नजदीक। अब जो वो देखता है उसे देख के उसका शरीर ठंडा पड़ जाता है, आँखें झपकना बन्द कर देती है, मुह खुला का खुला है। वो चीज़ देख मानो उसके होश उड़ गए है।


सालों पहले एक लड़की हुआ करती थी Anneliese Michel, सोलह साल की उम्र आते आते उसे हवा में अजीब अजीब आकृतियां दिखने लगीं, वो आत्माएं उसे उसका नाम ले के अपने पास बुलाती थीं, पास आओ मेरे, आओ मेरे साथ, Anneliese ज़ोर ज़ोर से चिलाने लगती थी, रोने लगती थी पर उसके अलावा ना तो वो आत्माएं किसी को दिखाई देती थीं, ना तो सुनाई देती थीं। Anneliese के माँ बाप ने उसका बहुत इलाज करवाया पर दिन बा दिन उसकी हरकतें और अजीब होती चली गयीं, वो रात में एकदम से उठ के खिड़की के बाहर कुछ देखने लगती थी, खिड़की के बाहर बस एक बड़ा सा पेड़ था, सड़क पे कोई भी नहीं, कभी कभी वो एकदम ठीक हो जाती थी और कभी कभी डर के मारे अपने पैर तक ज़मीन पे नहीं रखती थी, उसे लगता था जैसे ही वो अपने पैर ज़मीन पे रखेगी कोई उसे पकड़ लेगा। तेईस साल कई उम्र में उसकी मौत हो जाती है, मरने से कुछ दिन पहले तक उसे लगता था कि उसके कमरे से उस पेड़ की दूरी कम हो रही है, अब वो हर रात खुद को शीशे में देखकर पता नहीं किससे कहती थी, आओ मेरे पास, पास आओ। इस हालत में आते आते उसके माँ बाप को भी पता चल चुका था कि Anneliese possessed है, उन्होंने उसकी दवाइयां बंद करवा दी और church से priests बुलवाये, Anneliese उन priests को देखते ही चिल्लाने लगती थी, गन्दी गन्दी गालियां देने लगती थी, रोने लगती थी और एक दिन वही हुआ जिसका डर था, 1 July 1976 को Anneliese Michel की अपने ही घर में मौत हों जाती है। वो सिर्फ 30 किलो की थी जिस दिन उसकी मौत हुई, डॉक्टरों ने कई साइंटिफिक theories दीं कि आखिर में dyhradation की वजह से Anneliese की मौत हुई पर आजतक किसी को ये पता नहीं चला कि क्या उसे सच में उस पेड़ पे आत्माएं दिखती थीं? इनफैक्ट Anneliese Michel की कहानी इस दुनिया की सबसे रहस्यमयी कहानियों में से एक है। हालांकि बाद में Priest और Anneliese के माँ बाप को 6 माह की सजा हुई, Negligent Homicide के लिए। पढियेगा कभी Anneliese के बारे में गूगल, विकिपीडिया सब पर है। इन्फेक्ट इसके ऊपर कुछ फ़िल्म और बनी है।


रात के साढ़े तीन बजे वो आदमी बाइक पे जिस परछाई को एक औरत समझ रहा था वो कोई औरत नहीं बल्कि एक आदमी का कटा हुआ सर था जो एक खंडर की दीवार पे रखा हुआ था। ये देख के उस आदमी के रोंगटे खड़े हो जाते हैं और पता है इससे भी ज़्यादा डरावनी बात क्या हुई थी उस रात, उस कटे हुए सर के ठीक बीच में एक बड़ा सा लाल रंग का टीका लगा हुआ है जो अभी भी उसकी नाक से नीचे गिर रहा है।


पता है, अगर आपको वजह पता चल जाए ना कि ये इस वजह से हुआ है, जैसे रात में घंटी बजी तो आपको पता हो कि कोई आने वाला था तो आपको उतना डर नहीं लगेगा। पर इस कहानी की सबसे अजीब बात ये थी कि पुलिस को आजतक पता नहीं चला कि वो सर किसका था। किसने मारा उसे ये आजतक किसी को पता नहीं चला और यही बात तो डर पैदा करती है। जो कहानियां कभी ख़तम नहीं हो पाती उनका अंत अपने दिमाग में सोच सोचकर डर लगने लगता है। Anneliese Michel को क्या सच में भूत दिखते थे। उसकी तस्वीर देखेंगे तो शायद आप भी सोचने लगेंगे, उस पेड़ में उसे क्या दिखता था? वैसे भी उसकी कहानी को दुनिया की सबसे रहस्यमयी कहानियों में गिना जाता है....!


From this story, I am not promoting any type of Superstitions. The purpose of this story is only for entertainment purpose nothing else.

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Thursday, November 19, 2020

छठ महा त्यौहार

Chhath Puja
Chhath Puja


उगते सूर्य की उपासना तो करे पूरा संसार,

डूबते सूर्य की उपासना करें सिर्फ बिहार।

ये है हमारे मिथिलांचल के संस्कार,

जिसके लिए हम रहते बेकरार।।

ये है हमारा छठ महा त्यौहार।।


डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर,

उगते सूर्य का करे इंतज़ार।

रात के घोर अंधकार में ही,

पहुच जाए घाट पर कर पूरा श्रृंगार।।

ये है हमारा छठ महा त्यौहार।।


वक़्त के साथ बदले है हर त्यौहार,

वक़्त ने बदले संस्कृति और संस्कार।

मगर छू ना पाया हमारा ये त्यौहार,

प्रकृति से ही है इसकी रौनक हर बार।।

ये है हमारा छठ महा त्यौहार।।


बर्षो से जो बेटे रहते बहार,

इस दिन मिलेंगे वो माँ के द्वार।

पूरे वर्ष कहीं भी रहे परिवार,

छठ पर्व पर एकत्रित होगा पूरा परिवार।।

ये है हमारा छठ महा त्यौहार।।


मिट्टी के चूल्हे हम बनाते,

शुद्धता का पूरा ध्यान है रखते।

गोबर से नीपते घर और द्वार,

हाथ से हाथ मिला काम करता पूरा परिवार।।

ये है हमारा छठ महा त्यौहार।।


छत पर गेहूं सुखाने से लेकर,

घाट तक दौरा उठाना नंगे पैर।

पोखर हो या हो नदियों की धार,

लगता हर वर्ष श्रद्धालुओं का अंबार।।

ये है हमारा छठ महा त्यौहार।।


Nitish Kumar

नितीश कुमार


जय छठी मैया🙏


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Wednesday, November 4, 2020

Baba Ka Dhaba

 

Baba Ka Dhaba

बचपन में सुदर्शन जी की एक कहानी पढ़ी थी "हार की जीत"। शायद आपने भी पढ़ी होगी। इसमें तीन पात्र होते है बाबा भारती, डाकू खड़ग सिंह और बाबा भारती का एक बहुत ताकतवर और सुंदर घोड़ा-'सुल्तान'। बाबा भारती को सुल्तान बहुत प्रिय होता है। एक दिन खड़ग सिंह बाबा भारती से मिलने उनकी कुटिया में आता है। बातों बातों  में अचानक उसकी नजर सुल्तान पर पड़ती है। एक नजर में खड़ग सिंह को सुलतान आकर्षित लग जाता है, सुल्तान था ही इतना प्यारा। उसने बाबा भारती से सुल्तान के बारे में पूछा। बाबा भारती ने भी बड़े गर्व के साथ अपने सुल्तान के गुणों को सुनाने लगे। जाते जाते खड़ग सिंह बाबा भारती से कहता है कि ये घोड़ा तो मैं लेकर ही रहूगा। बाबा भारती डर जाते है और घोड़े की निगरानी तेज कर देते है।


एक दिन बाबा भारती अपने सुल्तान के संग कहीं जा रहे थे। अचानक रास्ते में उन्हें एक दिव्यांग मिलता है। वो बाबा भारती से आगे के सफर के लिए मदद मांगता है। बाबा भारती एक संत आदमी मदद से पीछे कैसे हट जाते? वो तुरंत नीचे उतर कर दिव्यांग को उठा कर सुल्तान पे बैठा दिया। सुल्तान पे बैठते ही उसने सुल्तान की लगाम थामी और हवा की तरह सुल्तान को भगा ले गया। वो दिव्यांग और कोई नही डाकू सुल्तान सिंह ही था। बाबा भारती ने बहुत कोशिश की मगर वो खड़ग सिंह को नही रोक पाए। आखिर में बाबा भारती ने पीछे से उसे चिल्ला कर कहा "खड़ग सिंह इस घटना का जिक्र किसी से मत करना, नही तो लोग जरूरतमंद की मदद करना बंद कर देंगे।"


ये बात डाकू के दिल मे बैठ गयी। दिन रात बस यही शब्द उसके कानो में गूंजने लगें। आखिर में उतने सुल्तान को लौटाने का निर्णय लिया और रात के अंधेरे में सुल्तान को बाबा भारती के कुटिया के सामने बांद के चले गया। सुबह जब बाबा भारती ने सुल्तान को अपनी आँखों के सामने देखा तो खुशी के मारे वो फुट फुट लगे और सुल्तान को गले से लगा लिए। 


लेकिन, ये कहानी आज ही क्यों? शायद आप समझ गए होंगे। आज हम सबके सामने भी बिल्कुल यही कहानी है, बस पात्र अलग है। बाबा भारती के शब्दों ने खड़ग सिंह का ह्रदय परिभर्तन तो कर दिया मगर आज क्या?


एक यूटुबर को क्या जरूरत की कोई किस हालात में है। लेकीन उसने देखा कि एक बुजुर्ग बाबा का ढाबा चला रहा है और आर्थिक परेशानी से जूझ रहा है। बंदे ने एक वीडियो बनाई और लोगो से विनती कि की आप सब बाबा के ढाबे पे आकर भोजन कीजिए और इन दंपति की मदद कीजिए। रातों रात वीडियो वायरल होती है। अगले दिन बाबा का ढाबा के सामने हुजूम आ जाता है। एक रात में बाबा की जिंदगी बदल जाती है। अतः सब अच्छा होता है। लोगो ने इंसानियत देखी, किस्मत बदलते देखा। देश को एक नई रहा मिली, मदद की रहा, मतलब जब हो पाए लोगो की मदद करे। लेकिन अचानक एक खबर आती है कि उसी बाबा ने उसी यूटुबर पर केस कर दिया। कुछ फण्ड का मामला है। कुछ दिन पहले बाबा रो रहा था तब यूटूबर ने उसे नई जिंदगी दी, आज बाबा ने केस किया तो बन्दा रो रहा है। वक़्त बड़ी जल्दी बदल जाता है ना? खैर कौन सही है और कौन गलत वो तो पता चल ही जाएगा। लेकिन एक सवाल उठता है जो लोगो मे कुछ मदद की भावना आयी थी वो क्या रह पाएगी? क्या अब मदद करते वक़्त लोगो के दिल मे ये घटना नही आएगी? क्या अब कोई निडर होकर मदद कर पाएगा? सवाल तो बहुत है मग़र जवाब नही है! मैं बस इतना बोलूंगा अगर आप सही है तो एक दिन ये बात सबको पता चलेगी ही।


नीतीश कुमार

Nitish Kumar


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Disclaimer: This article is personal view of Nitish Kumar, from this we are not supporting and defaming any Person(s) in the case of Baba Ka Dhaba.

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Saturday, October 3, 2020

सवाल पूछिए।

पूछिए सवाल
Ask Questions!

Today, I am trying to highlight such a serious topic. But before starting, it is also very important to clarify that it is written not to hurt someone's feelings but to give a message to the society.


कुछ दिन पहले लॉकडाउन में महाभारत देखी थी। उसमे द्रौपदी का चीर हरण का एक दृश्य आता है। मैंने इसके बारे में बहुत बार पहले सुना था, मगर कभी ये दृश्य या महाभारत नही देखी थी। हमेशा सोचा करता था कि उस जमाने मे भी भगवान श्री कृष्ण के अलावा ऐसा कोई नही था जो ये अनर्थ होने से रोकता। और सबसे बड़ा सवाल ऐसा हुआ ही क्यों? इसका जवाब मुझे महाभारत देखने के बाद मिला। जरा याद करिए वो सीन, एक कुल वधू वो भी ऐसे राज घराने की जिसके बारे में जितना बताया जाए कम है। उसे सभा गृह में बालों से खींच कर लाया जाता है। जिस सभा गृह में पितामह भीष्म, महाराज धृतराष्ट्र, गुरुवर द्रोणाचार्य, गुरुवर कृपाचार्य और महात्मा विदुर जैसे  विराट व्यक्तित्व के नाजाने कितने आदरणीय और सम्माननीय लोग उपस्थित थे। अगर आप इन सभी को नही जानते मतलब आपने महाभारत नही देखी। कभी फुर्सत से देखना वक़्त लगेगा मगर जरूर देखना। हर किरदार आपको कुछ सीख देगा जो शायद आपको और कोई ना दे पाए। आपने लॉकडाउन में महाभारत और रामायण ना देख कर बहुत बड़ी गलती की, एक सुनहरा मौका मिला था जिसे अपने हाथ से जाने दिया। मुझे खुद देखने के बाद अफसोस हुआ कि मैंने इसे देखने मे इतना वक़्त क्यों लगा दिया, बहुत पहले देख लेना चाहिए था। खैर, सवाल उठता है कि इस चीर हरण में गलती किसकी थी? द्रोपदी की? जो इन सब से अनजान अपने पांचाल देश को अपने प्रिय माता पिता को छोड़ हस्तिनापुर राजघराने की बहू के रूप में आयी थी। बड़े आदर-सम्मान के साथ उस परिवार में आयी थी, जिस परिवार के सामने उसे वो सब सहना पड़ा जिसे सुन कर ही रूह कांप जाए। पांडवो की? कौरवो की? या उस सभा गृह में उपस्थित प्रशिक्षित लोगो की? पूछिए ये सवाल अपने आप से अपने इतिहास से की किसकी गलती थी। मेरी नजर में ये गलती थी सभा गृह में बैठे महान लोगो की जो हस्तिनापुर जितना विराट राज्य तो बर्षो से चला रहे थे, मगर उस दिन किसी के जुबान पर एक भी सवाल नही आए कि "ये क्यों हो रहा है?", "ये ठीक नही हो रहा"। मैं ये नही कहा रहा कि कौरवो की गलती नही थी, जिन्होंने अपनी माँ समान भाभी के साथ ये हरकत की। कौरवो से ज्यादा तो सिर झुकाए वहां बैठे धर्मराज युधिष्ठिर और उनके भाइयो की थी जिन्होंने अपने अहंकार में एक स्वंतत्र स्त्री के आत्मसम्मान को दो कौड़ी के खेल में दांव पर लगा दिया। ये अधिकार उन्हें किसने दिया? यही संस्कार मिले थे उन्हें? लेकिन सबसे बड़ी गलती थी वहां बैठे और लोगो की। क्यों किसी ने इसका विरोध नही किया? सवाल नही किया? किसी ने भी एक शब्द अपनी जुबान से क्यों नही बोला? मुझे ख़ुशी हुई कि वहां एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने खड़े होकर महाराज धृतराष्ट्र से सवाल किया "सिंहासन के प्रति मेरी पूरी निष्ठा है, मैं आपका आदर करता हूं लेकिन मैं ये सवाल जरूर करुगा की महाराज! ये हो क्या रहा है"। मैं सम्मान करता हूं ऐसी इंसानियत रखने वाले विदुर जी का। मैं सम्मान करता हूं विकर्ण जी का, जो थे तो कौरव लेकिन उस दिन उन्होंने इसका खुल कर विरोध किया था। मैं सममान करता हूं द्रौपदी को, जिनकी वाणी और सवालो ने पूरे भवन को हिला दिया था।

द्रौपदी के लिए तो कुरुक्षेत्र में महाभारत हो गयी थी। मगर आज क्या?

अफसोस द्वापरयुग जैसा विदुर कलयुग में ना के बराबर है। हम सब को विदुर बनना पड़ेगा। सत्ता में बैठे लोगों से सवाल करना पड़ेगा कि ये हो क्या रहा है? हमें सवाल पूछना पड़ेगा BJP से, BJP के प्रभक्ताओ से, BJP के नेताओ से कि क्यों महाराष्ट्र के किसी विषय को इतनी गंभीरता से लिया जाता है? राजस्थान, पंजाब और छत्तीसगढ़ कि किसी घटना पर चिंता होती है और न्याय मांगते है। लेकिन वैसी ही घटना उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, बिहार जैसे राज्यो पर चुप्पी साध लेते है। क्यों आपके प्रदेश के किसी घटना पर न्याय दिलाना आपका काम नही है? सिर्फ न्याय मांगना ही आपका काम है? हमे सवाल पूछना चाहिए कांग्रेस से, क्यों उत्तर प्रदेश के एक घटना पर आपको इतनी फिक्र है मगर आपके महाराष्ट्र में क्या हो रहा है आपको उसकी खबर नही? हमे सवाल पूछना चाहिए हमारे प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी से कि जो वादे अपने किये थे वो वादे कहाँ गए? हमे सवाल पूछना चाहिए योगी आदित्यनाथ जी से कि जिन मुद्दों से परेशान हो कर आपको जीताया, ये सोच कर की अब तो हमारी कोई सुनेगा। लेकिन 3 साल बाद भी रोजाना आपके द्वार पर कोई इंसाफ के लिए हाथ फैला कर खड़ा क्यों हो जाता है? हमें सवाल पूछना चाहिए राहुल गांधी जी और सोनिया गांधी जी से कि आपकी सत्ता में 2 साल तक क्यों गुनहगारों को तारीख पर तारीख मिलती रही? हमे सवाल पूछना चाहिए अरविंद केजरीवाल जी से कि क्या सोच कर आपने गुनहगार को सिलाई मशीन दी थी? संसद में बैठी महिलाओं से सवाल पूछना चाहिए कि क्यों कुछ चुने हुए मुद्दों पर ही उनकी ज़ुबान खुलती है? महिला होकर महिला का दर्द भी पार्टी और जगह देख कर समझा जाएगा? बताइए स्मृति ईरानी जी और जया बच्चन जी। सवाल पूछिए अखिलेश यादव जी से, शिवराज सिंह चौहान जी से, उद्धव ठाकरे जी से, पूछिए सवाल हर एक नेता से की क्यों हर मुद्दों को राजनीति की नजरिये से देखा जाता है। क्या हमारे राजनेताओ में इंसानियत मर चुकी है? पार्टी के नेताओं को भी विकर्ण बन कर अपने साथियों से सवाल पूछना चाहिए कि ये क्या हो रहा है? टैग करके पूछिए नेताओ से प्रसाशन से हर एक सवाल। कितने दिन तक चुप रहेंगे, हर 5 साल में हमारे ही द्वार पर मिलेंगे।

हमें सवाल पूछना चाहिए हमारे पत्रकारों से क्यों कुछ मुद्दों पर ही आपके डिबेट चलते है? क्यों खबरें भी अपनी पसंदीदा सरकारों से ही पूछ कर चलाई जाती है? एक सवाल पूछिए अपने आप से क्यों ये हमारे अगल-बगल हो रहा है? हमारे समाज में क्यों हो रहा है? याद रखिए सिर्फ स्टेटस डाल देने से कुछ ठीक नही होने वाला। एक बार सोचिए और पूछिये खुद से एक सवाल कि कितनो को हमने गलत करने पर टोका है? राम राज्य में बहने सुरक्षित नही है बोलने से पहले खुद राम बनना पड़ेगा। 33 करोड़ लोग साथ आए थे तो हमे आजादी मिली थी, तो सोचिए 137 करोड़ लोग जब साथ आएंगे तब क्या-क्या बदल सकता है। मगर हमें हिन्दू-मुस्लिम, मंदिर-मज्जिद, BJP-Congress जैसे विषयों से फुर्सत मिले तब ना।

We are not Supporter, We are Voter!

नितीश कुमार

Nitish Kumar

Follow us on Instagram @hindi__poetry 

Disclaimer: This article is personal view of Nitish Kumar with the help of Kumar Vishwas's video of September 30, 2020 on his official youtube channel, from this we are not supporting and defaming any political leader and political party.

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Tuesday, July 7, 2020

लॉकडाउन में प्रकृति की सुंदरता।

Beauty of nature in lockdown
River Yamuna in Delhi during Lockdown

इंसानो को जब से घरों में बैठाया है!


इंसानो को जब से घरों में बैठाया है,
तुम देखो तो कितना बदलाव आया है।

हर प्राणी देखो तो अब शुद्ध सांस ले पाया है,
कार्बन कम ऑक्सिजन को ज्यादा पाया है।
लॉकडाउन ने देखो तो प्रदूषण को घटाया है,
जहरीली हवाओ को अब हमने विलुप्त पाया है।।

परिंदों ने देखो अब खुला आसमां पाया है,
कितने सालो बाद हमने उन्हें चहकता पाया है।
लॉकडाउन हमारे लिए एक संदेश लाया है,
पर्यावरण का असली रूप हमारे सामने लाया है।।

इंसानो को जब से घरों में बैठाया है,
तुम देखो तो कितना बदलाव आया है।

नदियों में देखो कितना निर्मल पानी आया है,
कितने सालो बाद फिर गंगा में अमृत आया है।
लॉकडाउन ने बर्षो की समस्या को सुलझाया है,
गंगा जल को फिर से अब पीने लायक बनाया है।।

दिल्ली के आसमां में देखो तो दो इन्द्रधनुष नजर आया है,
गंदा नाला बानी यमुना में हमे फिर से जल नजर आया है।
लॉकडाउन में गाड़ी से भरी सड़को को हमने सुनसान पाया है,
उन सड़को पर अब हमने पक्षियों को बैठते और पानी पीते पाया है।।

इंसानो को जब से घरों में बैठाया है,
तुम देखो तो कितना बदलाव आया है।

चारों और देखो तो क्या खूब सन्नाटा छाया है,
प्रकृति की मधुर आवाजों को हमने कानों में पाया है।
लॉकडाउन ने हमे पर्यावरण से मिलवाया है,
सफेद आसमां अब नीला अंबर में बदल आया है।।

चांदनी रात में देखो तो फिर तारों का समुंदर नजर आया है,
बारिश की बूंदों में हमने फिर मिट्टी की खुशबू को पाया है।
लॉकडाउन पर्यावरण के लिए एक वरदान बन आया है,
पीढ़ियों बाद हमने फिर प्रकृति को जीवित होते पाया है।।

इंसानो को जब से घरों में बैठाया है,
तुम देखो तो कितना बदलाव आया है।

Nitish Kumar

नीतीश कुमार



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