मजदूर |
जिनके हाथ हर दफा मिट्टी में रहते है,
सुबह से शाम वो बोझ उठाते रहते है।
सूरज से पहले वो घर से निकल जाते है,
चंद्रमा के साथ देर रात वो घर को आते है।।
वो और कोई नही हमारे देश के मजदूर होते है।
जो रोजाना सबको खुशियां देते है,
मगर खुद की खुशियों को कहि बेच देते है।
जो सबके जीवन मे तो रंग भर देते है,
मगर खुद के जीवन को बेरंग छोड़ देते है।।
वो और कोई नही हमारे देश के मजदूर होते है।
सब को तो वो घर बना के देते है,
मगर खुद फुटपाथ पे सोते है।
वो मेहनत तो दिन रात करते है,
मगर पैसे नाम भर का ही लेते है।।
वो और कोई नही हमारे देश के मजदूर होते है।
जिस दिन बिन काम रह जाते है,
उस दिन वो खा नही पाते है।
झूठी मुस्कान लिए सो जाते है,
मगर बेईमानी का वो नही खाते है।।
वो और कोई नही हमारे देश के मजदूर होते है।
जो खुद का इलाज नही करवा पाते है,
परिवार के लिए सारे ग़म सहन कर जाते है।
खुद के बच्चों को स्कूल नही भेज पाते है,
हर खुशियों से वो वंचित रह जाते है।।
वो और कोई नही हमारे देश के मजदूर होते है।
नितीश कुमार
Nitish Kumar
Op
ReplyDeleteWell written
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