JL DAV की यादें
Jhabban Lal DAV Public School |
स्कूल नही जीवन का अटूट हिस्सा था JL DAV
कहानी नही जीवन का प्यारा क़िस्सा था JL DAV
टीचर्स के अनोखे नाम वाला प्यार था JL DAV
हमारे बचपन का पहला यार था JL DAV
जान बुझ कर देरी से स्कूल जाने का बहाना था JL DAV
फिर गार्ड और पीटी से बेवजह बहस करने का ठिकाना था JL DAV
असेंबली में ना जाकर क्लास में ही बैठना था JL DAV
फिर सविता मैम के आते ही छुप जाना था JL DAV
स्कूल शुरू होते ही पहला काम अर्रेंजमेंट देखना था JL DAV
नोटिस बोर्ड से पहले हंसा आंटी से अर्रेंजमेंट देखना था JL DAV
मैम के जाते ही क्लास के बाहर घूमने निकल जाना था JL DAV
कम्बोज मैम का नाम सुन कर ही वापिस क्लास में घुस जाना था JL DAV
नेहा मालिक मैम का अचानक से दिया टोन सुनना था JL DAV
और उनके सामने रोजाना खुद को मौन खड़ा करना था JL DAV
नीनू मैम को अपनी सारी बाते बताना था JL DAV
उनके रूम में जाने का इंतज़ार था JL DAV
शिखा मैम के प्यारे फेस एक्सप्रेशन देखना था JL DAV
उनके सामने हमारा इंग्लिश बोलने का ओबसेशन दिखाना था JL DAV
विदुषी मैम के ट्रिक से फार्मूला याद करना था JL DAV
नीना भोला मैम के पीरियड में मैथ पढ़ना और लॉन्च करना था JL DAV
केमिस्ट्री लैब में बिना लैब कोट और बिना पढ़े जाना था JL DAV
फिर थोड़ी देर बाद संजय सर् का गुस्सा देखना था JL DAV
फिजिक्स लैब में फॉर्मेलिटी का प्रैक्टिकल करते रहना था JL DAV
बीच बीच मे कुलबीर सर् से मजेदार गप्पे मारना था JL DAV
ई जी रूम में गेम खेलना और मजे करना था JL DAV
पवन सर् से बेमतलब की सारी बाते करना था JL DAV
श्रुति मैम से पढ़ना कम बहस ज्यादा करना था JL DAV
सीमा सिंह मैम के क्लास में सबका मौजूद रहना था JL DAV
संगीता मैम के नोट्स को अंडरलाइन करना था JL DAV
आकांशा मैम के लम्बे नोट्स को याद करना था JL DAV
मंजू शर्मा मैम को देखते ही राधे राधे करना था JL DAV
गीता कपूर मैम से किलो पॉट होउर सुनना था JL DAV
सरिता मालिक मैम से कभी भी चाटा खा जाना था JL DAV
पंकज सर् के अजीब से पनिशमेंट को सहन करना था JL DAV
अनुपमा मैम का कभी गुस्सा कभी प्यार देखना था JL DAV
आरती जैन मैम का माँ वाला प्यार देखना था JL DAV
लाइब्रेरी में ग्रुप में पीछे बैठ कर फ़ोन चलाना था JL DAV
सबके साथ मिलकर टॉयलेट को बंक रूम बनाना था JL DAV
और दोस्त चीज़ छीन ले तो उनसे रूठ जाना था JL DAV
नई प्रिंसिपल से बच्चो और टीचर्स में ख़ौफ़ आ जाना था JL DAV
उनके आने के बाद इतने अच्छे बदलाव को देखना था JL DAV
सोचा भी ना वो सब कुछ अब स्कूल में होते देखना था JL DAV
डूबती कश्ती को पंख लगते और आसमां को छूते देखना था JL DAV
न्यू बिल्डिंग और ओल्ड बिल्डिंग में भेद भाव करना था JL DAV
क्लास से ज्यादा तो हमेशा ग्राउंड में वक़्त बिताना था JL DAV
DAV मैगज़ीन से एक दुसरो को मारना और प्लेन बनाना था JL DAV
अरेंजमेंट पीरियड में टीचर्स को खूब परेशान करना था था JL DAV
रोजाना कांच और बोर्ड को तोड़ना था JL DAV
फाइन के नाम पर सबका चुप हो जाना था JL DAV
एनुअल फंक्शन में टीचर्स का बिजी हो जाना था JL DAV
और हम सब का पूरे स्कूल में आतंक मचाना था JL DAV
सिर्फ स्कूल नही यादों का समुंदर है JL DAV
आज भी हम सबके दिल के अंदर है JL DAV
हम सबका अभिमान है JL DAV
हम सबकी शान है JL DAV
नितीश कुमार
Nitish Kumar
This poem is in remembering of Jhabban Lal DAV Public School, Paschim Vihar, New Delhi usually known as JLDAV or JL DAV.
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A very special thanks to our new Principal Ma'am Mrs. Anupama Bindra for making such changes in our school and make us proud JL DAV'ian