Thursday, November 19, 2020

छठ महा त्यौहार

Chhath Puja
Chhath Puja


उगते सूर्य की उपासना तो करे पूरा संसार,

डूबते सूर्य की उपासना करें सिर्फ बिहार।

ये है हमारे मिथिलांचल के संस्कार,

जिसके लिए हम रहते बेकरार।।

ये है हमारा छठ महा त्यौहार।।


डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर,

उगते सूर्य का करे इंतज़ार।

रात के घोर अंधकार में ही,

पहुच जाए घाट पर कर पूरा श्रृंगार।।

ये है हमारा छठ महा त्यौहार।।


वक़्त के साथ बदले है हर त्यौहार,

वक़्त ने बदले संस्कृति और संस्कार।

मगर छू ना पाया हमारा ये त्यौहार,

प्रकृति से ही है इसकी रौनक हर बार।।

ये है हमारा छठ महा त्यौहार।।


बर्षो से जो बेटे रहते बहार,

इस दिन मिलेंगे वो माँ के द्वार।

पूरे वर्ष कहीं भी रहे परिवार,

छठ पर्व पर एकत्रित होगा पूरा परिवार।।

ये है हमारा छठ महा त्यौहार।।


मिट्टी के चूल्हे हम बनाते,

शुद्धता का पूरा ध्यान है रखते।

गोबर से नीपते घर और द्वार,

हाथ से हाथ मिला काम करता पूरा परिवार।।

ये है हमारा छठ महा त्यौहार।।


छत पर गेहूं सुखाने से लेकर,

घाट तक दौरा उठाना नंगे पैर।

पोखर हो या हो नदियों की धार,

लगता हर वर्ष श्रद्धालुओं का अंबार।।

ये है हमारा छठ महा त्यौहार।।


Nitish Kumar

नितीश कुमार


जय छठी मैया🙏


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Wednesday, November 4, 2020

Baba Ka Dhaba

 

Baba Ka Dhaba

बचपन में सुदर्शन जी की एक कहानी पढ़ी थी "हार की जीत"। शायद आपने भी पढ़ी होगी। इसमें तीन पात्र होते है बाबा भारती, डाकू खड़ग सिंह और बाबा भारती का एक बहुत ताकतवर और सुंदर घोड़ा-'सुल्तान'। बाबा भारती को सुल्तान बहुत प्रिय होता है। एक दिन खड़ग सिंह बाबा भारती से मिलने उनकी कुटिया में आता है। बातों बातों  में अचानक उसकी नजर सुल्तान पर पड़ती है। एक नजर में खड़ग सिंह को सुलतान आकर्षित लग जाता है, सुल्तान था ही इतना प्यारा। उसने बाबा भारती से सुल्तान के बारे में पूछा। बाबा भारती ने भी बड़े गर्व के साथ अपने सुल्तान के गुणों को सुनाने लगे। जाते जाते खड़ग सिंह बाबा भारती से कहता है कि ये घोड़ा तो मैं लेकर ही रहूगा। बाबा भारती डर जाते है और घोड़े की निगरानी तेज कर देते है।


एक दिन बाबा भारती अपने सुल्तान के संग कहीं जा रहे थे। अचानक रास्ते में उन्हें एक दिव्यांग मिलता है। वो बाबा भारती से आगे के सफर के लिए मदद मांगता है। बाबा भारती एक संत आदमी मदद से पीछे कैसे हट जाते? वो तुरंत नीचे उतर कर दिव्यांग को उठा कर सुल्तान पे बैठा दिया। सुल्तान पे बैठते ही उसने सुल्तान की लगाम थामी और हवा की तरह सुल्तान को भगा ले गया। वो दिव्यांग और कोई नही डाकू सुल्तान सिंह ही था। बाबा भारती ने बहुत कोशिश की मगर वो खड़ग सिंह को नही रोक पाए। आखिर में बाबा भारती ने पीछे से उसे चिल्ला कर कहा "खड़ग सिंह इस घटना का जिक्र किसी से मत करना, नही तो लोग जरूरतमंद की मदद करना बंद कर देंगे।"


ये बात डाकू के दिल मे बैठ गयी। दिन रात बस यही शब्द उसके कानो में गूंजने लगें। आखिर में उतने सुल्तान को लौटाने का निर्णय लिया और रात के अंधेरे में सुल्तान को बाबा भारती के कुटिया के सामने बांद के चले गया। सुबह जब बाबा भारती ने सुल्तान को अपनी आँखों के सामने देखा तो खुशी के मारे वो फुट फुट लगे और सुल्तान को गले से लगा लिए। 


लेकिन, ये कहानी आज ही क्यों? शायद आप समझ गए होंगे। आज हम सबके सामने भी बिल्कुल यही कहानी है, बस पात्र अलग है। बाबा भारती के शब्दों ने खड़ग सिंह का ह्रदय परिभर्तन तो कर दिया मगर आज क्या?


एक यूटुबर को क्या जरूरत की कोई किस हालात में है। लेकीन उसने देखा कि एक बुजुर्ग बाबा का ढाबा चला रहा है और आर्थिक परेशानी से जूझ रहा है। बंदे ने एक वीडियो बनाई और लोगो से विनती कि की आप सब बाबा के ढाबे पे आकर भोजन कीजिए और इन दंपति की मदद कीजिए। रातों रात वीडियो वायरल होती है। अगले दिन बाबा का ढाबा के सामने हुजूम आ जाता है। एक रात में बाबा की जिंदगी बदल जाती है। अतः सब अच्छा होता है। लोगो ने इंसानियत देखी, किस्मत बदलते देखा। देश को एक नई रहा मिली, मदद की रहा, मतलब जब हो पाए लोगो की मदद करे। लेकिन अचानक एक खबर आती है कि उसी बाबा ने उसी यूटुबर पर केस कर दिया। कुछ फण्ड का मामला है। कुछ दिन पहले बाबा रो रहा था तब यूटूबर ने उसे नई जिंदगी दी, आज बाबा ने केस किया तो बन्दा रो रहा है। वक़्त बड़ी जल्दी बदल जाता है ना? खैर कौन सही है और कौन गलत वो तो पता चल ही जाएगा। लेकिन एक सवाल उठता है जो लोगो मे कुछ मदद की भावना आयी थी वो क्या रह पाएगी? क्या अब मदद करते वक़्त लोगो के दिल मे ये घटना नही आएगी? क्या अब कोई निडर होकर मदद कर पाएगा? सवाल तो बहुत है मग़र जवाब नही है! मैं बस इतना बोलूंगा अगर आप सही है तो एक दिन ये बात सबको पता चलेगी ही।


नीतीश कुमार

Nitish Kumar


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Disclaimer: This article is personal view of Nitish Kumar, from this we are not supporting and defaming any Person(s) in the case of Baba Ka Dhaba.

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Saturday, October 3, 2020

सवाल पूछिए।

पूछिए सवाल
Ask Questions!

Today, I am trying to highlight such a serious topic. But before starting, it is also very important to clarify that it is written not to hurt someone's feelings but to give a message to the society.


कुछ दिन पहले लॉकडाउन में महाभारत देखी थी। उसमे द्रौपदी का चीर हरण का एक दृश्य आता है। मैंने इसके बारे में बहुत बार पहले सुना था, मगर कभी ये दृश्य या महाभारत नही देखी थी। हमेशा सोचा करता था कि उस जमाने मे भी भगवान श्री कृष्ण के अलावा ऐसा कोई नही था जो ये अनर्थ होने से रोकता। और सबसे बड़ा सवाल ऐसा हुआ ही क्यों? इसका जवाब मुझे महाभारत देखने के बाद मिला। जरा याद करिए वो सीन, एक कुल वधू वो भी ऐसे राज घराने की जिसके बारे में जितना बताया जाए कम है। उसे सभा गृह में बालों से खींच कर लाया जाता है। जिस सभा गृह में पितामह भीष्म, महाराज धृतराष्ट्र, गुरुवर द्रोणाचार्य, गुरुवर कृपाचार्य और महात्मा विदुर जैसे  विराट व्यक्तित्व के नाजाने कितने आदरणीय और सम्माननीय लोग उपस्थित थे। अगर आप इन सभी को नही जानते मतलब आपने महाभारत नही देखी। कभी फुर्सत से देखना वक़्त लगेगा मगर जरूर देखना। हर किरदार आपको कुछ सीख देगा जो शायद आपको और कोई ना दे पाए। आपने लॉकडाउन में महाभारत और रामायण ना देख कर बहुत बड़ी गलती की, एक सुनहरा मौका मिला था जिसे अपने हाथ से जाने दिया। मुझे खुद देखने के बाद अफसोस हुआ कि मैंने इसे देखने मे इतना वक़्त क्यों लगा दिया, बहुत पहले देख लेना चाहिए था। खैर, सवाल उठता है कि इस चीर हरण में गलती किसकी थी? द्रोपदी की? जो इन सब से अनजान अपने पांचाल देश को अपने प्रिय माता पिता को छोड़ हस्तिनापुर राजघराने की बहू के रूप में आयी थी। बड़े आदर-सम्मान के साथ उस परिवार में आयी थी, जिस परिवार के सामने उसे वो सब सहना पड़ा जिसे सुन कर ही रूह कांप जाए। पांडवो की? कौरवो की? या उस सभा गृह में उपस्थित प्रशिक्षित लोगो की? पूछिए ये सवाल अपने आप से अपने इतिहास से की किसकी गलती थी। मेरी नजर में ये गलती थी सभा गृह में बैठे महान लोगो की जो हस्तिनापुर जितना विराट राज्य तो बर्षो से चला रहे थे, मगर उस दिन किसी के जुबान पर एक भी सवाल नही आए कि "ये क्यों हो रहा है?", "ये ठीक नही हो रहा"। मैं ये नही कहा रहा कि कौरवो की गलती नही थी, जिन्होंने अपनी माँ समान भाभी के साथ ये हरकत की। कौरवो से ज्यादा तो सिर झुकाए वहां बैठे धर्मराज युधिष्ठिर और उनके भाइयो की थी जिन्होंने अपने अहंकार में एक स्वंतत्र स्त्री के आत्मसम्मान को दो कौड़ी के खेल में दांव पर लगा दिया। ये अधिकार उन्हें किसने दिया? यही संस्कार मिले थे उन्हें? लेकिन सबसे बड़ी गलती थी वहां बैठे और लोगो की। क्यों किसी ने इसका विरोध नही किया? सवाल नही किया? किसी ने भी एक शब्द अपनी जुबान से क्यों नही बोला? मुझे ख़ुशी हुई कि वहां एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने खड़े होकर महाराज धृतराष्ट्र से सवाल किया "सिंहासन के प्रति मेरी पूरी निष्ठा है, मैं आपका आदर करता हूं लेकिन मैं ये सवाल जरूर करुगा की महाराज! ये हो क्या रहा है"। मैं सम्मान करता हूं ऐसी इंसानियत रखने वाले विदुर जी का। मैं सम्मान करता हूं विकर्ण जी का, जो थे तो कौरव लेकिन उस दिन उन्होंने इसका खुल कर विरोध किया था। मैं सममान करता हूं द्रौपदी को, जिनकी वाणी और सवालो ने पूरे भवन को हिला दिया था।

द्रौपदी के लिए तो कुरुक्षेत्र में महाभारत हो गयी थी। मगर आज क्या?

अफसोस द्वापरयुग जैसा विदुर कलयुग में ना के बराबर है। हम सब को विदुर बनना पड़ेगा। सत्ता में बैठे लोगों से सवाल करना पड़ेगा कि ये हो क्या रहा है? हमें सवाल पूछना पड़ेगा BJP से, BJP के प्रभक्ताओ से, BJP के नेताओ से कि क्यों महाराष्ट्र के किसी विषय को इतनी गंभीरता से लिया जाता है? राजस्थान, पंजाब और छत्तीसगढ़ कि किसी घटना पर चिंता होती है और न्याय मांगते है। लेकिन वैसी ही घटना उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, बिहार जैसे राज्यो पर चुप्पी साध लेते है। क्यों आपके प्रदेश के किसी घटना पर न्याय दिलाना आपका काम नही है? सिर्फ न्याय मांगना ही आपका काम है? हमे सवाल पूछना चाहिए कांग्रेस से, क्यों उत्तर प्रदेश के एक घटना पर आपको इतनी फिक्र है मगर आपके महाराष्ट्र में क्या हो रहा है आपको उसकी खबर नही? हमे सवाल पूछना चाहिए हमारे प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी से कि जो वादे अपने किये थे वो वादे कहाँ गए? हमे सवाल पूछना चाहिए योगी आदित्यनाथ जी से कि जिन मुद्दों से परेशान हो कर आपको जीताया, ये सोच कर की अब तो हमारी कोई सुनेगा। लेकिन 3 साल बाद भी रोजाना आपके द्वार पर कोई इंसाफ के लिए हाथ फैला कर खड़ा क्यों हो जाता है? हमें सवाल पूछना चाहिए राहुल गांधी जी और सोनिया गांधी जी से कि आपकी सत्ता में 2 साल तक क्यों गुनहगारों को तारीख पर तारीख मिलती रही? हमे सवाल पूछना चाहिए अरविंद केजरीवाल जी से कि क्या सोच कर आपने गुनहगार को सिलाई मशीन दी थी? संसद में बैठी महिलाओं से सवाल पूछना चाहिए कि क्यों कुछ चुने हुए मुद्दों पर ही उनकी ज़ुबान खुलती है? महिला होकर महिला का दर्द भी पार्टी और जगह देख कर समझा जाएगा? बताइए स्मृति ईरानी जी और जया बच्चन जी। सवाल पूछिए अखिलेश यादव जी से, शिवराज सिंह चौहान जी से, उद्धव ठाकरे जी से, पूछिए सवाल हर एक नेता से की क्यों हर मुद्दों को राजनीति की नजरिये से देखा जाता है। क्या हमारे राजनेताओ में इंसानियत मर चुकी है? पार्टी के नेताओं को भी विकर्ण बन कर अपने साथियों से सवाल पूछना चाहिए कि ये क्या हो रहा है? टैग करके पूछिए नेताओ से प्रसाशन से हर एक सवाल। कितने दिन तक चुप रहेंगे, हर 5 साल में हमारे ही द्वार पर मिलेंगे।

हमें सवाल पूछना चाहिए हमारे पत्रकारों से क्यों कुछ मुद्दों पर ही आपके डिबेट चलते है? क्यों खबरें भी अपनी पसंदीदा सरकारों से ही पूछ कर चलाई जाती है? एक सवाल पूछिए अपने आप से क्यों ये हमारे अगल-बगल हो रहा है? हमारे समाज में क्यों हो रहा है? याद रखिए सिर्फ स्टेटस डाल देने से कुछ ठीक नही होने वाला। एक बार सोचिए और पूछिये खुद से एक सवाल कि कितनो को हमने गलत करने पर टोका है? राम राज्य में बहने सुरक्षित नही है बोलने से पहले खुद राम बनना पड़ेगा। 33 करोड़ लोग साथ आए थे तो हमे आजादी मिली थी, तो सोचिए 137 करोड़ लोग जब साथ आएंगे तब क्या-क्या बदल सकता है। मगर हमें हिन्दू-मुस्लिम, मंदिर-मज्जिद, BJP-Congress जैसे विषयों से फुर्सत मिले तब ना।

We are not Supporter, We are Voter!

नितीश कुमार

Nitish Kumar

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Disclaimer: This article is personal view of Nitish Kumar with the help of Kumar Vishwas's video of September 30, 2020 on his official youtube channel, from this we are not supporting and defaming any political leader and political party.

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Tuesday, July 7, 2020

लॉकडाउन में प्रकृति की सुंदरता।

Beauty of nature in lockdown
River Yamuna in Delhi during Lockdown

इंसानो को जब से घरों में बैठाया है!


इंसानो को जब से घरों में बैठाया है,
तुम देखो तो कितना बदलाव आया है।

हर प्राणी देखो तो अब शुद्ध सांस ले पाया है,
कार्बन कम ऑक्सिजन को ज्यादा पाया है।
लॉकडाउन ने देखो तो प्रदूषण को घटाया है,
जहरीली हवाओ को अब हमने विलुप्त पाया है।।

परिंदों ने देखो अब खुला आसमां पाया है,
कितने सालो बाद हमने उन्हें चहकता पाया है।
लॉकडाउन हमारे लिए एक संदेश लाया है,
पर्यावरण का असली रूप हमारे सामने लाया है।।

इंसानो को जब से घरों में बैठाया है,
तुम देखो तो कितना बदलाव आया है।

नदियों में देखो कितना निर्मल पानी आया है,
कितने सालो बाद फिर गंगा में अमृत आया है।
लॉकडाउन ने बर्षो की समस्या को सुलझाया है,
गंगा जल को फिर से अब पीने लायक बनाया है।।

दिल्ली के आसमां में देखो तो दो इन्द्रधनुष नजर आया है,
गंदा नाला बानी यमुना में हमे फिर से जल नजर आया है।
लॉकडाउन में गाड़ी से भरी सड़को को हमने सुनसान पाया है,
उन सड़को पर अब हमने पक्षियों को बैठते और पानी पीते पाया है।।

इंसानो को जब से घरों में बैठाया है,
तुम देखो तो कितना बदलाव आया है।

चारों और देखो तो क्या खूब सन्नाटा छाया है,
प्रकृति की मधुर आवाजों को हमने कानों में पाया है।
लॉकडाउन ने हमे पर्यावरण से मिलवाया है,
सफेद आसमां अब नीला अंबर में बदल आया है।।

चांदनी रात में देखो तो फिर तारों का समुंदर नजर आया है,
बारिश की बूंदों में हमने फिर मिट्टी की खुशबू को पाया है।
लॉकडाउन पर्यावरण के लिए एक वरदान बन आया है,
पीढ़ियों बाद हमने फिर प्रकृति को जीवित होते पाया है।।

इंसानो को जब से घरों में बैठाया है,
तुम देखो तो कितना बदलाव आया है।

Nitish Kumar

नीतीश कुमार



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Sunday, June 14, 2020

Sushant Singh Rajput

Sushant singh rajput
Sushant Singh Rajput

पता है, आपको बिल्कुल भी पता नही चलेगा कि कुछ लोग अंदर से कितने टूटे हुए होते है। अगर वो आपको आ कर बोलेगे न कि "मैं अंदर से टूटा हुआ हूं" तो आप यकीन नहीं करेंगे। उनका स्वभाव ही कुछ ऐसा होता है की सामने वाला यकीन ही नही कर सकता, कि इतने हँसमुख इंसान को भी कोई तकलीफ होगी। कोई बात उसे अंदर से दीमक की तरह खाई जा रही होगी। आपको हर समस्या में समझाने वाले इंसान को कभी कोई समझने वाला नही मिलता होगा। वो शायद आपको बोलते भी होंगे कि "यार मुझे ये परेशानी है", "मैं इसलिए परेशान हूं" आप हंस कर टाल देते होंगे कि सबको परेशानी से निकालने वाले को आखिर किस बात की परेशानी होगी? या आप सच भी मानते होंगे तो ये सोच कर कुछ नही करते होंगे कि "ये तो इतना समझदार है खुद को संभाल लेगा" लेकिन सच्चाई ये है कि उन्हें भी किसी के साथ की, किसी से खुल कर बात की जरूरत होती है।

कहते है जाने वाले को हम रोक नही सकते लेकिन इस परिस्थिति में हम जाने वाले को बिल्कुल रोक सकते है। बस आप अपने जानकारों से रोजाना बात करिए। उन्हें समझने की कोशिश करिए उनसे खुल कर पूछिए की "कोई तकलीफ तो नही?" फॉर्मेलिटी के लिए नही सच में दिल से पूछिए। अगर वो कोई बात शेयर करते है तो आराम से उसे समझे और फिर उसे समझाइए। आप नही समझा सकते तो किसी और को बोलिए लेकिन चुप बिल्कुल भी मत बैठिए। आपका एक चुप किसी को जिंदगी भर के लिए चुप करवा सकता है। सबसे जरूरी की आप कुछ भी करने और बोलने से पहले कई बार सोचे कि आपका एक कदम किसी के दिल को ठेस तो नही पहुचा देगा। आपके लिए वो बहुत छोटी बात होगी लेकिन सामने वाले के लिए वो बहुत बड़ी बात हो जाती है। शायद इतनी बड़ी की हमे फिर से वो देखने को मिल जाए जो आज मिला है। मैं हमेशा कहता हूं अपने आप को सामने वाले कि जगह रख कर देखो की उसने ऐसा क्यों किया या बोला अगर मैं उसकी जगह होता तो क्या करता या बोलता। जिस दिन आप खुद को सामने वाले कि जगह रखना सीख जाएंगे ना उस दिन आपकी आधी समस्या खुद हल हो जाएगी।

जरा सोच कर देखिए कि कितने अजीब हो गए हैं हम सब। हमारे बीच एक व्यक्ति मुश्किल में होता है। अंदर से बुरी तरह से टूट रहा होता है। ज़िंदगी से हार रहा होता है। खुद से निराश हो रहा होता है। मौत के करीब जा रहा होता है और हमारी संवेदना तब जागती है जब वो हमेशा के लिए हमें छोड़ कर चले जाता है। काश! मुश्किल में घिरे सुशांत सिंह जी को उनका कोई साथी हिम्मत देकर बचा पाता।

बिहार के पटना जैसे छोटे शहर से मुम्बई तक का सफर हर कोई पूरा नही कर पता। 2003 में DCE एंट्रेंस एग्जाम में AIR 7 लाना कितनी बड़ी बात है आप इससे समझ पाएंगे कि नॉन मेडिकल स्टूडेंट का इकलौता यही सपना होता है कि 10,000 रैंक भी आ जाए तो जिंदगी बन जाएगी। नेशन ओलिंपियाड फिजिक्स में टॉप करना, ये तो स्टूडेंट के सपने से भी बहुत दूर होता है। स्टूडेंट एक एग्जाम क्लियर करने की चाह रखते है इन्होंने 1 नही 2 नही पूरे 11 इंजीनियरिंग के एग्जाम क्लियर किए। अब आप सोच सकते है एक्टर के साथ साथ ये कितने अच्छे अच्छे स्टूडेंट भी थे।

आपके बहुत से डायलाग आज भी बहुतो को प्रेरणा देते है और देते रहेंगे!

मैं जब भी " M S Dhoni - The Untold Story " देखूंगा तो आपको अपने सामने जिंदा पाउगा। कुछ लोगो के काम इतने अच्छे होते है कि वो अमर रहा जाते है....

💐💐🌼🌼🌼🌼🌼💐💐
🙏🙏भावपूर्ण श्रदांजलि🙏🙏


We will miss you SUSHANT SINGH RAJPUT Sir


Sushant Singh Rajput rose to become a prominent actor due to his talent. A young actor, who excelled in his roles, gone too soon.. May the departed soul Rest in peace and God give strength to his family, friends & fans to bear this loss.

Note: We are not saying and supporting that Sushant Singh Rajput committed suicide, this article is based on initial report of June 14, 2021 from Media. Main purpose of this article is to increase awareness in our society.

धन्यवाद
Thank you

नितीश कुमार
Nitish Kumar

Sunday, May 31, 2020

कोरोना वायरस से कैसे बचें?


Covid 19
Covid-19

कल (1 जून 2020) से लॉकडॉन-5 (अनलॉक-1) शुरू हो रहा है। जिसमें लग भग सब कुछ खुल रहा है। इसका मतलब ये नही की अब आप घूमना फिरना शुरू कर दो। ये सब कुछ बस इसलिए खोला जा रहा है कि लोगो की आर्थिक स्थिति ठीक हो पाए। याद रहे कोरोना खत्म नही हुआ है, ये अब और तेजी से बढ़ रहा है। तो बस पैसे कमाने, काम करने और जरूरी चीज़ों के लिए ही घर से बाहर निकले। इसे मजाक में या हल्के में ना ले। आप अपनी जिंदगी अपने परिवार की जिन्दगी के लिए और देश के लिए घर पे ही रहे। वेवजह बिल्कुल भी घर से ना निकले। अगर कुछ महीने आप घर पर बैठ जाएंगे तो फिर से आप जिंदगी भर घूम सकते हैं मौज-मस्ती कर सकते हैं।

युवाओं के लिए एक जरुरी संदेश।

आपके पेरेंट्स अपनी जान जोखिम में डाल कर आप के लिए पैसे कमाने घर
से बाहर निकलेंगे तो आप वेवजह घर स बाहर निकल कर खुद की उनकी जान जोखिम में मत डाल देना।
जिन यार दोस्तो से आप मिलने जाओगे न, अगर भगवान ना करें आपको कोरोना हो गया ना तो उसके बाद वही यार दोस्त आपको नजर भी नही आएंगे।

कोरोना वायरस (कोविड - 19) से कैसे बचें?


जब भी आप जरूरी कामों के लिए घर बाहर जाए तो इन बातों को हमेशा ख्याल रखे और इसका पालन करें। ये आपको कोरोना वायरस (Covid-19) से बहुत हद तक कोरोना वायरस से बचा सकता है।

S - Social Distancing (समाजिक दूरी)

M - Mask (मास्क)

S - Sanitizer / Soap (सैनिटाइजर / साबुन)


Social Distancing (समाजिक दूरी)

जब भी आप घर से बाहर जाए तो सबसे जरूरी है कि सामाजिक दूरी का हर पल हर जगह हर क्षण खयाल रखें। हमेशा लोगो से कम से कम 6 फ़ीट (2 गज़) की दूरी बना कर रखे। किसी भी जगह किसी भी हालत में ये 2 गज की दूरी को कम नही होने देना है। किसी भी ऐसे व्यक्ति के सम्पर्क में ना आए जिन्हें कोरोना के लक्षण (जैसे बुखार और खांसी) है। 

Mask (मास्क)

मास्क को अब अपने शरीर का ही एक हिस्सा मानना है। हमेशा मास्क पहन कर रहे। बार बार मास्क को छुए नही। मास्क के रूप में आप खुद का कपड़े (3 लेयर वाला) वाला मास्क भी प्रयोग कर सकते है। कपड़ा या रुमाल को मास्क की जगह प्रयोग करते वक़्त आप इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखे कि जो हिस्सा आपने पहली बार कपड़े/रुमाल का बाहर की तरफ रखा था उसे हर बार बाहर की तरफ ही रखे। दूसरों के मास्क का प्रयोग ना करें। मास्क को रोजाना धो ले या बदल ले।

Sanitizer / Soap (सेनिटाइजर / साबुन)

दिन में बार बार सैनिटाइजर या साबुन से हाथ धोते रहे है। सेनिटाइजर का प्रयोग करते वक़्त आप सेनिटाइजर हाथ मे लेने के बाद सेनिटाइजर की बोतल को रख दे उसके बाद ही हाथ मे सेनिटाइजर लगाए, याद रहे सैनिटाइजर लगाने के बाद सैनिटाइजर की बोतल को आप न छुए या सेनिटाइजर की बोतल पर सेनिटाइजर लगा कर उसे भी डिसइन्फेक्ट(disinfect) करे। साबुन से बार बार 20 सेकंड तक हाथ धोए और हाथ धोते वक़्त अपने नल को भी साफ कर दे ताकि आपके नल पर कीटाणु ना रह जाए।

पानी की बोतल

घर से निकले से पहले अपने साथ अपनी पानी की बोतल में पानी लेना ना भूले। बहार कहि से भी पानी भरने से पहले देख ले वहां साफ सफाई होनी चाहिए। नल से पानी भरने से पहले नल को अच्छी तरह से धो लें। अपनी बोतल से किसी को पानी ना पीने दे, और ना ही दूसरों की बोतल से पानी पीयें।

चीज़ों को छूने से बचे

किसी भी अनावश्यक चीज़ों को जैसे बटन, दरवाजे, रेलिंग को न छुए। बटन और दरवाज़ों का प्रयोग करने के लिए अपने हाथ की कोनी का प्रयोग करे। 

मुह को ना छुए

किसी भी हालत में हमेशा याद रहे कि आपको अपने मुह के किसी भी हिस्से को कभी भी नही छूना है। अगर जरूरत पड़ती भी है तो छूने से पहले हाथ को साबुन या सेनिटाइजर से धो लें उसके बाद ही मुह को छुए।

सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करें तो

यात्रा करने से पहले अपने हाथों को सैनिटाइज करें सुनिश्चित करें कि वाहन के ड्राइवर और स्टाफ सहित सभी यात्री मास्क पहनें हुए है। ध्यान दे कि शारीरिक दूरी बनी रहे (एक व्यक्ति पहर लाइन की हर ओर जिग-जैग तरीके में रहें) एसी को बंद रखें और ताजी हवा के लिए खिड़कियां खोल दें।

हमेशा यह याद रखें थूकें नहीं

थूक लगा कर पेज न पलटें, न नोट आदि गिनें। किसी के साथ भी खाना, पानी और बाकी समान शेयर ना करे। भीड़भाड़ वाले इलाके में जाने से बचें। हाथ न मिलाएं, नमस्ते करें। खांसते या छींकते वक्त कोहनी या टिश्यू पेपर का इस्तेमाल करें।

घर पर आने के बाद

घर में चप्पल या जूते पहन कर ना जाए। घर में घुसने से पहले अपने चप्पल जूतों को खोल ले और घर के बाहर ही रख दे, नही तो उसे घर के किसी ऐसी जगह रख दे जहां कोई आता जाता ना हो। अपने समान को डिसइन्फेक्ट करे और किसी अच्छी जगह रख दें। घर में आते ही सबसे पहले अपने हाथ पैर अच्छे से धो लें और नाहा लें। उसके बाद बाथरूम की बाकी चीज़ों को धो ले जैसे नल, दरवाजे का हैंडल। दोबारा से वही कपड़े ना पहने उन कपड़ो को अलग से धो कर अच्छे से धूप में सूखने दें।

कोविड-19 को फैलने से रोकने के लिए:

  • ऊपर बताए गए SMS का ध्यान रहे और दूसरों को भी बताए
  • बार-बार हाथ धोएं। हाथ धोने के लिए, साबुन और पानी या एल्कोहल वाला हैंड रब इस्तेमाल करें।
  • अगर कोई खांस या छींक रहा है, तो उससे उचित दूरी बनाए रखें।
  • अपनी आंखें, नाक या मुंह को न छुएं।
  • खांसने या छींकने पर अपनी नाक और मुंह को कोहनी या टिश्यू पेपर से ढक लें।
  • अगर आप ठीक नहीं महसूस कर रहे हैं, तो घर पर रहें।
  • अगर आपको बुखार, खांसी है, और सांस लेने में परेशानी हो रही है, तो डॉक्टर के पास जाएं. पहले ही कॉल कर लें।
  • स्थानीय स्वास्थ्य प्राधिकरण के निर्देश मानें।


Wednesday, May 27, 2020

भूतिया स्टेशन (Part 1)

Horror Story
भूतिया स्टेशन
डर..... ये एक ऐसा शब्द है जिसे पढ़ते ही मन विचलित हो जाता है। पता नही क्यों लेकिन हमारे मन में बचपन से ही डर बुरी तरीके से बैठा दिया जाता है। 'सो जाओ नही तो भूत आ जायेगा', 'ये खा लो नही तो भूत तुम्हें खा जाएगा', 'जो रोता है भूत उसके पास आ जाता है', 'बाहर अकेले मत जाना भूत घूमता है' और भी बहुत कुछ। जिस उम्र में बच्चों को अपना नाम भी नही पता होता है, खाना क्या तीज है वो तक नही पता होता है, और हम उसे ये सब जरूरी बातें समझाने की जगह भूत के बारे में बताते है। मतलब उन्हें छोटी से छोटी चीज़े कुछ भी नही पता होती, लेकिन भूत के बारे में पता होता है कि भूत एक ऐसी चीज़ है जो बहुत बहुत बहुत ज्यादा खतरनाक है। खुशी क्या होती है दुख क्या होता है ये भी उन्हें नही पता होता लेकिन डर क्या होता है वो 6 महीने के बच्चों को भी अच्छे से पता होता है। जिस उम्र में बच्चों को शारीरिक और मानसिक रूप में मजबूत बनाना चाहिए उस उम्र में रोजाना भूत, आत्मा, चुड़ैल का नाम लेकर, डरावनी कहानी सुना सुना कर हम बच्चो को डरपोक बना देते है। उनके दिल दिमाग में पूरी तरह से डर को बैठा बैठा दिया जाता है।

तो आज की कहानी भी एक डर पे ही आधारित है।

पिछली बार की कहानी (भूतिया मकान) पढ़ने के बाद मेरे एक दोस्त ने अपनी कहानी सुनाई की कैसे डर किसी पर हावी हो जाता है और ये डर उस व्यक्ति से कुछ भी करवा सकता है।

(अब कहानी उसके शब्दों में)

WARNING: Reader's discretion is advised, should not be read by anyone under the age of 12.

मेरी बाहरवीं की परीक्षा होने के बाद मैं कुछ दिनों के लिए गांव चला गया। गाँव में दादा-दादी रहते है। उनकी मदद के लिए दिन में एक नौकर रहता हैं लेकिन हम उन्हें चाचा जी कहते है। फ़ोन पर दादा जी ने बताया था कि हमारे गांव की छोटी रेलवे लाइन अब बड़ी रेलवे लाइन बनने जा रही है इसलिए रेल सेवा बंद कर दी गयी है। इसलिए मैं बस से गांव गया। अब बड़ा हो गया था इसलिए पहली बार अकेले कहि गया था। बस से गांव के नजदीक के स्टैंड पर उतरने के बाद मैंने गांव के रेलवे स्टेशन वाला रास्ता चुना, ये देखने के लिए की काम कैसा चल रहा है। ये क्या! यहां तो कुछ भी काम नही हो रहा, पुराना रेलवे स्टेशन खंडर बन चुका है। पूरा रास्ता शमशान की तरह वीरान पड़ा है। बाद में मैंने दादा जी से पूछा तो उन्होंने बताया कि वहां मजदूरों ने भूत देखा था तब से कोई वहां काम नही करता तुम वहां से क्यों आए? उस रास्ते से कोई आता जाता नही वहां बहुत लोगो ने भूत देखा है! भगवान का शुक्र है कि तुम सही सलामत आ गए अब आगे से उधर मत जाना। ये लाइन सुनते ही मैं अंदर से पूरा कांप गया। पसीने छूट गए, रोंगटे खड़े हो गए कि अगर वहां मुझे भूत मिल जाता तो! बचपन से ही भूत से दुनिया ने इतना डरा रखा था तो ये डर तो लगना ही था। अब पता नहीं क्यों लेकिन मुझे अब रात को हर चीज़ों से डर लगने लगा। ऐसा लगता कि घर के शीशे से मुझे कोई देख रहा है। कानों को छूती हुई हवाएं कुछ बोल रही है। घर की खिड़कियों से कोई अंदर आ रहा है। इन सब बातों पर मेरा ध्यान ना जाए तो मैं फ़ोन चलाने लगता तो अचानक लगता कि कोई मेरे पीछे से मुझे कोई देख रहा है और आचानक से कंधे पर हाथ रखेगा। जैसे ही मैं पलंग से उतरूंगा तो कोई मुझे पलंग के नीचे से खींच लेगा। मेरे घर की छत से वो रेलवे स्टेशन नजर आता है। जब भी मैं अपने छत पर जाता हूं और उस स्टेशन को देखता हूं तो उसे ऐसा लगता है जैसे कोई मुझे वहां से बुला रही है की 'तुम आओ मैं तुमसे मिलना चाहती हूं'। मैंने सोचा कि दादा-दादी को ये बात बता दु लेकिन दिमाग में आया कि वो क्या सोचेंगे? शायद यही मैंने सबसे बड़ी गलती कर दी। एक रात मैं सो रहा था और अचानक मेरे सपने में वही टूटा फूटा रेलवे स्टेशन नजर आता है। वो देखते ही मैं इतना सहम जाता हूं कि मेरी नींद खुल जाती है। पसीने से लत पत जब मैंने घड़ी देखी तो रात के 2 बज रहे थे। मैं पूरा डर चुका हूं, घड़ी की टिक-टॉक टिक-टॉक और डरा रही है। कोई मुझे आवाज दे रहा है। मैं जोर जोर से भागने लगता हूँ। दादा-दादी के कमरे की तरफ नही, उसी रेलवे स्टेशन की तरफ, हां! उसी स्टेशन की तरफ, पता नही क्यों लेकिन मैं भागा जा रहा हूँ। मुझे खुद कुछ समझ नही आ रहा, ना चाहते हुए भी मेरे कदम आगे बढ़ रहे है। जैसे लग रहा है कोई सफेद चीज़ मेरे पीछे पीछे भाग रही है। मेरे हर कदम के साथ वो भी अपने कदम बढ़ा रही है। अब पायल की आवाज मेरे कानों को सुनाई दे रही है। जैसे ही पीछे मुड़ता हूं आवाज गयाब हो जाती है। जो चाँद रोज प्यारा लगता था वो भी आज डरावना लग रहा है। मैं भाग रहा हूं, पायल की आवाज तेज हो रही है। मैं चिल्ला रहा हूं, पायल की आवाज और तेज हो रही है। जैसे जैसे मैं भाग रहा हूं आवाज बढ़ती ही जा रही है। अचानक मैं पीछे मुड़ा! मेरे पीछे कोई नजर नही आ रहा मेरी नजर मेरे घर की तरफ गयी वहां छत स कोई मुझे टाटा कर रहा है। मैं अब फिर स्टेशन की और भागने लगा। कदम लडख़ड़ा रहे है, सांसे अटक रही है, पसीने से पूरा शरीर भीग चुका है। पायल की आवाज अभी भी मेरा पीछा कर रही है। मैं जोर जोर से चिल्ला रहा हूं मगर कोई भी नजर नही आ रहा गले से आवाज भी नही निकल पा रही फिर भी मैं चिल्ला रहा हूं। स्टेशन पर अब मैं पहुच गया। रात अब अपने चरम पर पहुच चुकी है। मुझे ऐसा लग रहा है यहां पर कोई परछाई मुझे देख रही है। अचानक परछाई ने अपनी जगह बदल ली। मैं जल्दी जल्दी अपनी गर्दन घुमा रहा हूं, परछाई फिर मुझे किसी ओर तरफ से देखने लग रही है। मुझे कुछ समझ नही आ रहा क्या हो रहा है। डर पूरी तरह से मुझ पर हावी हो गया है। एक छोटी से आहट से भी सांसे रुक रही है। ऐसा लग रहा है कि स्टेशन की छत पर मुझे कोई बुला रहा है। स्टेशन के छत की सीढ़ियों की और अब मै भाग रहा हूं। अचानक से मैं गिर गया। खड़ा नही हुआ जा रहा। ऐसा लग रहा है जैसे कोई मुझे दबाने की कोशिश कर रहा है। जैसे तैसे मैं उठ गया। फिर चिल्लाते हुए गिरते उठते मैं स्टेशन की छत पर पहुच गया। आंखों में डर, माथे पर पसीना। चारो तरफ बस अंधेरा अंधेरा और अंधेरा। ये क्या! छत पर कोई खड़ा है। डरावना चाँद, पायल की आवाज और ये डरावनी रात, ऐसा लग रहा है जैसे ये पहले भी कभी हुआ है। अब वो छत स कूदने की कोशिश कर रहा है। मैं कांपते कांपते उसकी और बढ़ रहा हूं। ठंडी हवा छू कर निकल रही है तो लग रहा कोई पीछे से आ कर कोई मेरा गला दबा देगा। उसके पास अब मै जैसे तैसे डरते डरते पहुच गया। अब वो कूदने की कोशिश कर रहा है, मैं उसे बचाने की कोशिश कर रहा हूँ। मुझे फिर कुछ समझ नही आ रहा है मैं ऐसा क्यों कर रहा हूँ। लग रहा है जैसे मेरा शरीर अब मेरा नही रहा अब ये किसी और का हो गया है। कहते है रात को आत्माओ की  शक्ति दुगनी हो जाती है और वो आम लोगो की बीच में आ जाती है। जिन्हें पता चल जाये कि आत्मा आस पास है उन पर वो हावी हो जाती है। शायद उस डरावनी रात भी मेरे साथ यही हुआ था। वो कूद गया! उसे बचाने के लिए अब मैं भी कूद गया....! ये क्या! मेरे कूदते ही वो नजर आना बंद हो गया! पायल की आवाज अब जोर-जोर से डरावनी हँसी में बदल गयीं। ऐसे लग रहा है जैसे वो हँसी मुझे कहा रही है कि मैंने अपना काम कर लिया। मैं जमीन पर गिरता हु। आंखे बंद हो रही है और आंखें बंद हो गयी। अब अंधेरा, अंधेरा, अंधेरा और बस अंधेरा.....!

To be continued....


Nitish Kumar
नितीश कुमार

Disclaimer:


From this story, I am not promoting any type of Superstitions. The purpose of this story is only for entertainment purpose nothing else.

If someone's story mirrors this, it is just a coincidence.

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Wednesday, May 6, 2020

Love in Train

Love at first sight
Love at first sight

In a train, during my journey,
I saw a girl, sweet as honey.
I can't able to explain her beautiful smile,
I have never seen such a unique hairstyle.
That moment I have only one aim,
How I will ask her name?
Suddenly! That moment one miracle happen,
She questioned me " Can I ask you a Question"
I still have to pinch myself,
How it happened itself?
Now, I'm dreaming my whole life with her,
There is no one in my dream except her.
Suddenly! A clap broke that dream,
"Are you listening me?" She scream.
I nervously nodded my head,
"Now, I don't need any answer from you" she said.
All dreams that moment slipped like a sand,
I understand there is no one to hold my hand.

Nitish Kumar

Sunday, April 5, 2020

JL DAV की यादें


JL DAV की यादें


Jhabban Lal DAV Public School
Jhabban Lal DAV Public School

स्कूल नही जीवन का अटूट हिस्सा था JL DAV
कहानी नही जीवन का प्यारा क़िस्सा था JL DAV

टीचर्स के अनोखे नाम वाला प्यार था JL DAV
हमारे बचपन का पहला यार था JL DAV

जान बुझ कर देरी से स्कूल जाने का बहाना था JL DAV
फिर गार्ड और पीटी से बेवजह बहस करने का ठिकाना था JL DAV

असेंबली में ना जाकर क्लास में ही बैठना था JL DAV
फिर सविता मैम के आते ही छुप जाना था JL DAV

स्कूल शुरू होते ही पहला काम अर्रेंजमेंट देखना था JL DAV
नोटिस बोर्ड से पहले हंसा आंटी से अर्रेंजमेंट देखना था JL DAV

मैम के जाते ही क्लास के बाहर घूमने निकल जाना था JL DAV
कम्बोज मैम का नाम सुन कर ही वापिस क्लास में घुस जाना था JL DAV

नेहा मालिक मैम का अचानक से दिया टोन सुनना था JL DAV
और उनके सामने रोजाना खुद को मौन खड़ा करना  था JL DAV

नीनू मैम को अपनी सारी बाते बताना था JL DAV
उनके रूम में जाने का इंतज़ार था JL DAV

शिखा मैम के प्यारे फेस एक्सप्रेशन देखना था JL DAV
उनके सामने हमारा इंग्लिश बोलने का ओबसेशन दिखाना था JL DAV

विदुषी मैम के ट्रिक से फार्मूला याद करना था JL DAV
नीना भोला मैम के पीरियड में मैथ पढ़ना और लॉन्च करना था JL DAV

केमिस्ट्री लैब में बिना लैब कोट और बिना पढ़े जाना था JL DAV
फिर थोड़ी देर बाद संजय सर् का गुस्सा देखना था JL DAV

फिजिक्स लैब में फॉर्मेलिटी का प्रैक्टिकल करते रहना था JL DAV
बीच बीच मे कुलबीर सर् से मजेदार गप्पे मारना था JL DAV

ई जी रूम में गेम खेलना और मजे करना था JL DAV
पवन सर् से बेमतलब की सारी बाते करना था JL DAV

श्रुति मैम से पढ़ना कम बहस ज्यादा करना था JL DAV
सीमा सिंह मैम के क्लास में सबका मौजूद रहना था JL DAV

संगीता मैम के नोट्स को अंडरलाइन करना था JL DAV
आकांशा मैम के लम्बे नोट्स को याद करना था JL DAV

मंजू शर्मा मैम को देखते ही राधे राधे करना था JL DAV
गीता कपूर मैम से किलो पॉट होउर सुनना था JL DAV

सरिता मालिक मैम से कभी भी चाटा खा जाना था JL DAV
पंकज सर् के अजीब से पनिशमेंट को सहन करना था JL DAV

अनुपमा मैम का कभी गुस्सा कभी प्यार देखना था JL DAV
आरती जैन मैम का माँ वाला प्यार देखना था JL DAV

लाइब्रेरी में ग्रुप में पीछे बैठ कर फ़ोन चलाना था JL DAV
सबके साथ मिलकर टॉयलेट को बंक रूम बनाना था JL DAV

भल्ला जी के कैंटीन पर लॉन्च में टूट जाना था JL DAV
और दोस्त चीज़ छीन ले तो उनसे रूठ जाना था JL DAV

नई प्रिंसिपल से बच्चो और टीचर्स में ख़ौफ़ आ जाना था JL DAV
उनके आने के बाद इतने अच्छे बदलाव को देखना था JL DAV

सोचा भी ना वो सब कुछ अब स्कूल में होते देखना था JL DAV
डूबती कश्ती को पंख लगते और आसमां को छूते देखना था JL DAV

न्यू बिल्डिंग और ओल्ड बिल्डिंग में भेद भाव करना था JL DAV
क्लास से ज्यादा तो हमेशा ग्राउंड में वक़्त बिताना था JL DAV

DAV मैगज़ीन से एक दुसरो को मारना और प्लेन बनाना था JL DAV
अरेंजमेंट पीरियड में टीचर्स को खूब परेशान करना था था JL DAV

रोजाना कांच और बोर्ड को तोड़ना था JL DAV
फाइन के नाम पर सबका चुप हो जाना था JL DAV

एनुअल फंक्शन में टीचर्स का बिजी हो जाना था JL DAV
और हम सब का पूरे स्कूल में आतंक मचाना था JL DAV

सिर्फ स्कूल नही यादों का समुंदर है JL DAV
आज भी हम सबके दिल के अंदर है JL DAV

हम सबका अभिमान है JL DAV
हम सबकी शान है JL DAV

नितीश कुमार
Nitish Kumar


This poem is in remembering of Jhabban Lal DAV Public School, Paschim Vihar, New Delhi usually known as JLDAV or JL DAV.

If you want any change/recommendation/sugggestion then contact to Nitish Kumar on Instagram @nitish.poetry or @hindi__poetry


A very special thanks to our new Principal Ma'am Mrs. Anupama Bindra for making such changes in our school and make us proud JL DAV'ian