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भूतिया स्टेशन |
तो आज की कहानी भी एक डर पे ही आधारित है।
पिछली बार की कहानी (भूतिया मकान) पढ़ने के बाद मेरे एक दोस्त ने अपनी कहानी सुनाई की कैसे डर किसी पर हावी हो जाता है और ये डर उस व्यक्ति से कुछ भी करवा सकता है।
(अब कहानी उसके शब्दों में)
WARNING: Reader's discretion is advised, should not be read by anyone under the age of 12.
मेरी बाहरवीं की परीक्षा होने के बाद मैं कुछ दिनों के लिए गांव चला गया। गाँव में दादा-दादी रहते है। उनकी मदद के लिए दिन में एक नौकर रहता हैं लेकिन हम उन्हें चाचा जी कहते है। फ़ोन पर दादा जी ने बताया था कि हमारे गांव की छोटी रेलवे लाइन अब बड़ी रेलवे लाइन बनने जा रही है इसलिए रेल सेवा बंद कर दी गयी है। इसलिए मैं बस से गांव गया। अब बड़ा हो गया था इसलिए पहली बार अकेले कहि गया था। बस से गांव के नजदीक के स्टैंड पर उतरने के बाद मैंने गांव के रेलवे स्टेशन वाला रास्ता चुना, ये देखने के लिए की काम कैसा चल रहा है। ये क्या! यहां तो कुछ भी काम नही हो रहा, पुराना रेलवे स्टेशन खंडर बन चुका है। पूरा रास्ता शमशान की तरह वीरान पड़ा है। बाद में मैंने दादा जी से पूछा तो उन्होंने बताया कि वहां मजदूरों ने भूत देखा था तब से कोई वहां काम नही करता तुम वहां से क्यों आए? उस रास्ते से कोई आता जाता नही वहां बहुत लोगो ने भूत देखा है! भगवान का शुक्र है कि तुम सही सलामत आ गए अब आगे से उधर मत जाना। ये लाइन सुनते ही मैं अंदर से पूरा कांप गया। पसीने छूट गए, रोंगटे खड़े हो गए कि अगर वहां मुझे भूत मिल जाता तो! बचपन से ही भूत से दुनिया ने इतना डरा रखा था तो ये डर तो लगना ही था। अब पता नहीं क्यों लेकिन मुझे अब रात को हर चीज़ों से डर लगने लगा। ऐसा लगता कि घर के शीशे से मुझे कोई देख रहा है। कानों को छूती हुई हवाएं कुछ बोल रही है। घर की खिड़कियों से कोई अंदर आ रहा है। इन सब बातों पर मेरा ध्यान ना जाए तो मैं फ़ोन चलाने लगता तो अचानक लगता कि कोई मेरे पीछे से मुझे कोई देख रहा है और आचानक से कंधे पर हाथ रखेगा। जैसे ही मैं पलंग से उतरूंगा तो कोई मुझे पलंग के नीचे से खींच लेगा। मेरे घर की छत से वो रेलवे स्टेशन नजर आता है। जब भी मैं अपने छत पर जाता हूं और उस स्टेशन को देखता हूं तो उसे ऐसा लगता है जैसे कोई मुझे वहां से बुला रही है की 'तुम आओ मैं तुमसे मिलना चाहती हूं'। मैंने सोचा कि दादा-दादी को ये बात बता दु लेकिन दिमाग में आया कि वो क्या सोचेंगे? शायद यही मैंने सबसे बड़ी गलती कर दी। एक रात मैं सो रहा था और अचानक मेरे सपने में वही टूटा फूटा रेलवे स्टेशन नजर आता है। वो देखते ही मैं इतना सहम जाता हूं कि मेरी नींद खुल जाती है। पसीने से लत पत जब मैंने घड़ी देखी तो रात के 2 बज रहे थे। मैं पूरा डर चुका हूं, घड़ी की टिक-टॉक टिक-टॉक और डरा रही है। कोई मुझे आवाज दे रहा है। मैं जोर जोर से भागने लगता हूँ। दादा-दादी के कमरे की तरफ नही, उसी रेलवे स्टेशन की तरफ, हां! उसी स्टेशन की तरफ, पता नही क्यों लेकिन मैं भागा जा रहा हूँ। मुझे खुद कुछ समझ नही आ रहा, ना चाहते हुए भी मेरे कदम आगे बढ़ रहे है। जैसे लग रहा है कोई सफेद चीज़ मेरे पीछे पीछे भाग रही है। मेरे हर कदम के साथ वो भी अपने कदम बढ़ा रही है। अब पायल की आवाज मेरे कानों को सुनाई दे रही है। जैसे ही पीछे मुड़ता हूं आवाज गयाब हो जाती है। जो चाँद रोज प्यारा लगता था वो भी आज डरावना लग रहा है। मैं भाग रहा हूं, पायल की आवाज तेज हो रही है। मैं चिल्ला रहा हूं, पायल की आवाज और तेज हो रही है। जैसे जैसे मैं भाग रहा हूं आवाज बढ़ती ही जा रही है। अचानक मैं पीछे मुड़ा! मेरे पीछे कोई नजर नही आ रहा मेरी नजर मेरे घर की तरफ गयी वहां छत स कोई मुझे टाटा कर रहा है। मैं अब फिर स्टेशन की और भागने लगा। कदम लडख़ड़ा रहे है, सांसे अटक रही है, पसीने से पूरा शरीर भीग चुका है। पायल की आवाज अभी भी मेरा पीछा कर रही है। मैं जोर जोर से चिल्ला रहा हूं मगर कोई भी नजर नही आ रहा गले से आवाज भी नही निकल पा रही फिर भी मैं चिल्ला रहा हूं। स्टेशन पर अब मैं पहुच गया। रात अब अपने चरम पर पहुच चुकी है। मुझे ऐसा लग रहा है यहां पर कोई परछाई मुझे देख रही है। अचानक परछाई ने अपनी जगह बदल ली। मैं जल्दी जल्दी अपनी गर्दन घुमा रहा हूं, परछाई फिर मुझे किसी ओर तरफ से देखने लग रही है। मुझे कुछ समझ नही आ रहा क्या हो रहा है। डर पूरी तरह से मुझ पर हावी हो गया है। एक छोटी से आहट से भी सांसे रुक रही है। ऐसा लग रहा है कि स्टेशन की छत पर मुझे कोई बुला रहा है। स्टेशन के छत की सीढ़ियों की और अब मै भाग रहा हूं। अचानक से मैं गिर गया। खड़ा नही हुआ जा रहा। ऐसा लग रहा है जैसे कोई मुझे दबाने की कोशिश कर रहा है। जैसे तैसे मैं उठ गया। फिर चिल्लाते हुए गिरते उठते मैं स्टेशन की छत पर पहुच गया। आंखों में डर, माथे पर पसीना। चारो तरफ बस अंधेरा अंधेरा और अंधेरा। ये क्या! छत पर कोई खड़ा है। डरावना चाँद, पायल की आवाज और ये डरावनी रात, ऐसा लग रहा है जैसे ये पहले भी कभी हुआ है। अब वो छत स कूदने की कोशिश कर रहा है। मैं कांपते कांपते उसकी और बढ़ रहा हूं। ठंडी हवा छू कर निकल रही है तो लग रहा कोई पीछे से आ कर कोई मेरा गला दबा देगा। उसके पास अब मै जैसे तैसे डरते डरते पहुच गया। अब वो कूदने की कोशिश कर रहा है, मैं उसे बचाने की कोशिश कर रहा हूँ। मुझे फिर कुछ समझ नही आ रहा है मैं ऐसा क्यों कर रहा हूँ। लग रहा है जैसे मेरा शरीर अब मेरा नही रहा अब ये किसी और का हो गया है। कहते है रात को आत्माओ की शक्ति दुगनी हो जाती है और वो आम लोगो की बीच में आ जाती है। जिन्हें पता चल जाये कि आत्मा आस पास है उन पर वो हावी हो जाती है। शायद उस डरावनी रात भी मेरे साथ यही हुआ था। वो कूद गया! उसे बचाने के लिए अब मैं भी कूद गया....! ये क्या! मेरे कूदते ही वो नजर आना बंद हो गया! पायल की आवाज अब जोर-जोर से डरावनी हँसी में बदल गयीं। ऐसे लग रहा है जैसे वो हँसी मुझे कहा रही है कि मैंने अपना काम कर लिया। मैं जमीन पर गिरता हु। आंखे बंद हो रही है और आंखें बंद हो गयी। अब अंधेरा, अंधेरा, अंधेरा और बस अंधेरा.....!
To be continued....
Nitish Kumar
नितीश कुमार
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If someone's story mirrors this, it is just a coincidence.
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Sir m a huge fan of your writing
ReplyDeleteThank you so much sir🙏❤️
DeleteSir, Very strong message from 1st para of this story. Really this message should be reach to each and everyone of our society that they have to make their children Very strong physicaly as well as mentaly not coward.
ReplyDeleteStory is also Very horrible and interesting and I'm eagerly waiting for his next part. Hope! You will upload next part as soon as possible.
Thank you so much for such words🙏❤️
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